समरसता के अहसासों पर तंग नजरिया

जब भी कोई त्योहार का उत्सव आता है, लोग उससे जोड़कर अपने-अपने उत्पाद या प्रोडक्ट को बेचने की जुगत भिडाते हैं। त्योहार की शुभकामनाएं और बधाई देकर वे आम ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जिससे कि उनका माल ज्यादा से ज्यादा बिक सके। होली आ रही है। हाल ही में एक डिटर्जेंट उत्पाद कंपनी ने होली से जुड़ा एक विज्ञापन बनाया। इसमें एक बच्ची साइकिल से जा रही है। बच्चे उस पर रंगों से भरे गुब्बारे फेंकते हैं। लड़की के सारे कपड़े रंगों से भीग जाते हैं, मगर वह मुस्कुराती रहती है। जब बच्चे गुब्बारे फेंकना बंद कर देते हैं, तो एक छोटा बच्चा सफेद कपडे पहने आता है। उसके सिर पर जो टोपी लगी है, उससे पहचाना जा सकता है कि बच्चा मुसलमान है। लड़की उसे साइकिल पर बिठाकर मस्जिद तक ले जाती है। बच्चा कहता है कि वह नमाज पढ़कर अभी आता है। विज्ञापन के अंत में बताया जाता है कि दाग अच्छे हैं। इस विज्ञापन को देखते ही जैसे आलोचकों की भीड लग गई और हिंद-मसलमान होने लगा। कई कहने लगे कि क्या बकरीद के खुन में सने किसी के पैर दिखाए जा सकते हैं। किसी ने इस बच्ची और बच्चे को साथ देखकर इसे लव जिहाद कहाऔर इस डिटर्जेंट के बहिष्कार की मांग की जाने लगी। बहुत से लोग इसे साम्प्रदायिक सदभाव का प्रतीक कहने लगे। किसी ने इसे हिन्दू- मुस्लिम एकता से जोड़ादोनों तरह की की प्रतिक्रियाएं अतिरंजना से भरी थीं। बच्चों को बच्चा न रहकर अपनी-अपनी भावनाओं के अनुसार खींच-खींचकर बड़ा कर दिया गया था। यहां तक कि कई लोगों ने यह भी साबित करने की कोशिश की कि उत्पाद का मालिक मुसलमान है। जबकि एक चैनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ऐसा कुछ नहीं है। मान लीजिए ऐसा होता तो भी किसी पर अपना नजरिया लादना कहां तक जायज है। कोई मुसलमान होगा तो ऐसा ही करेगा कि उस पर शक किया जाए. यह ठीक नहीं है। फिर विज्ञापन बनाने वालों को भी किसी ने यह नहीं बताया कि होली समाज के सभी वर्गों में लोकप्रिय हैइसीलिए जहां होली पर विज्ञापन की बच्ची के कपड़े रंगों से सराबोर वहीं बच्चे के कपड़े एकदम साफ-सुथरे थे। बच्चों के बीच में धर्मों की ऐसी विभाजक रेखाएं खींचना बेहद अशोभनीय है। यह एक तरह से बच्चों के मन में भेदभाव के बीज बोना है। फिर जिन्होंने इसे लव जिहाद कहा, वे दो बालकों को भी सिर्फ पति- पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते से देख रहे थे, और एक तरह से बाल-विवाह की वकालत कर रहे हैं। बच्चों के बारे में यह सोच कितना खतरनाक है।बच्चों को बच्चा रहने देने में न विज्ञापन बनाने वालों ने दिलचस्पी दिखाई, न ही उसके आलोचकों ने। क्या बच्चे एक-दूसरे की मदद नहीं करते, साथ-साथ नहीं खेलते-कूदते। एक साथ नहीं पढ़ते। वे एक-दूसरे के मित्र नहीं होते। क्या एक बच्ची और एक बच्चा अगर मिलते हैं और संयोग से उनका धर्म अलग हुआ तो क्या उनके आपसी रिश्ते सिर्फ लव अफेयर के होते हैं। वे बचपन से ही न करिअर के बारे में सोचते हैं, न पढाई के बारे में और न ही किसी त्योहार के बारे में। जब सोचें तब सिर्फ प्यार-मोहब्बत के बारे में। और उसे लव जिहाद का नाम दिया जाए। बच्चों के मन में इस तरह का जहर बोना और सोच रखना बेहद निंदनीय है।हमारे यहां मुसलमान कवियों ने बेहतरीन होलियां लिखी हैं। नजीर अकबराबादी बेहतरीन होलियां लिखी हैं। नजीर अकबराबादी इसके खास उदाहरण हैं। यही नहीं, मुगल बादशाहों के बारे में कहा जाता है कि वे होली बहुत धूमधाम से मनाते थे। ये उत्सव कई-कई दिन तक चलते थे। गांवों में आज भी हिन्दू-मुसलमान मिलकर होली खेलते हैं। एक-दूसरे के घर जाकर विभिन्न व्यंजनों का आनंद लेते हैं। मगर मुनाफा कमाने वालों और धार्मिक वैमनस्य फैलाने वालों को इससे क्या। एक को अपना माल बेचना है और दूसरों को नफरत इस विज्ञापन में बच्चे रंग-गुलाल से नहीं दर से गब्बारे मारकर होली खेल रहे थे। इसे बनाने वालों को शायद मालूम नहीं कि पानी या रंग से भरा गुब्बारा फेंकना सरकारी तौर पर प्रतिबंधित है क्योंकि एक जमाने में जान-बूझकर महिलाओं को ही निशाना बनाकर ये गुब्बारे फेंके जाते थे और तरह तरह से छेड़खानी की जाती थी। इसके अलावा कई बार गुब्बारों से गम्भीर चोट लगती थी। कान के पर्दे तक फट जाते थे, आंखें घायल हो जाती थीं। क्यों डिटर्जेंट बनाने वाली इस कम्पनी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस विज्ञापन को बनाकर जहां डिटर्जेंट सेकुलरिज्म का चैम्पियन बनकर अपना माल बेच रहा था, वहीं बाबा रामदेव देशभक्ति के रैपर में अपना माल बेचना चाहते थे। रामदेव ने कहा- हम किसी भी मजहब के विरोध में नहीं हैं। लेकिन जो चल रहा है, उस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। लगता है जिस विदेशी सर्फ से हम कपड़ों की धलाई कर रहे हैं, उसकी धुलाई के दिन आ गए। पिछले दिनों से अक्सर रामदेव बहुत कट्टरतावादी भाषा बोलते हैं। यह उन जैसे योगी ही नहीं, व्यापारी के लिए भी ठीक नहीं है। जो लोग व्यापार करते हैं, उनसे यह उम्मीद नहीं की जाती कि वे किसी भी जाति-धर्म को विशेष तौर से रेखांकित करें क्योंकि उनके खरीददार हर धर्म, जाति के लोग होते हैं। कोई भी उत्पाद किसी एक वर्ग विशेष को कोई भी उत्पाद किसी एक वर्ग विशेष को समर्पित नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे उत्पाद का बाजार सिकुड़ता है। कोई भी कारपोरेट या व्यापारी घराना अपने बाजार को सिकुड़ता नहीं देखना चाहता क्योंकि यह घाटे का सौदा है। इससे मुनाफा कम होता है। भूमंडलीकरण के बाद तो व्यापार ने देशों की सीमाओं को भी तोड़ दिया है क्योंकि सच मुनाफा होता है, कोई देश, विदेश, गोरा, काला, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई नहीं-