लक्ष्य के सुख की कल्पना से राह आसान

क्या आपने कभी सोचा है कि अनंत आकाश में उड़ने वाला एक पक्षी जो जमीन पर पडे मांस के एक छोटे से टकडे को देख लेता है लेकिन वही पक्षी शिकारी के द्वारा बिछाए गए बडे से जाल को नहीं देख पाता। अगर आप बारीकी से समझेंगे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि हम सभी के साथ भी बिलकल ऐसा ही होता है। दरअसल, हम वही देख पाते हैं जो हम देखना चाहते हैं।हमारी जमीन भी बिलकल ऐसी ही हैजिस पर मांस भी है. घास भी है, कंकड़-पत्थर भी हैं और शिकारी का बिछाया हआ जाल भी है। अगर सारे पक्षी यह शिकायत करने लगे कि जमीन पर जाल बिछाने की वजह से उनको भोजन नहीं मिल पा रहा है और वह भूख से मर रहे हैं तो यह बात कुछ जमेगी नहीं हमारे जीवन में भी अवसर और चुनौतियां साथ आती हैं। जितना बडा अवसर उतनी बडी चनौती। कठिन परिस्थितियों से दो-दो हाथ करके जो जाल से बचकर भोजन चुनने में माहिर होता है वही विजेता कहलाता है। माहिर बनने की इस कला में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है आप की दृष्टि चिडिया की आंख पर अर्जुन की दृष्टि का दृष्टांत तो हम सदियों से सुनते आये हैं लेकिन आज की स्थिति थोड़ी अलग है। आज अर्जुन के तीर और चिड़िया की आंख के बीच में कई सारे व्यवधान हैं, जिनको हम अनदेखा नहीं कर सकते। हमें यह समझना होगा कि सार्वभौमिक सत्य के जीवन का विस्तार भी वहीं तक सीमित है, जहां तक किसी अज्ञात लेकिन युक्तियुक्त तथ्य का उदभव नहीं हो जाता। अगर कल कोई वैज्ञानिक शोध इस बात के प्रमाण उपलब्ध कर ले कि पृथ्वी का आकार और गति वह नहीं है जो हम अब तक मानते आये हैं तो हमारे इस 'सार्वभौमिक सत्य' का क्या होगा?आइजैक न्यूटन द्वारा समझाया गया गुरुत्वाकर्षण का नियम अनादिकाल से चल रहा था लेकिन ये न्यूटन की दृष्टि ही थी, जिसने इस क्रिया के वैज्ञानिक पक्ष को समझा वरना सेब तो सदियों से जमीन पर गिरते आ रहे थे। इसलिए यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारी दृष्टि किस और उन्मुख है। हमें वही दिखाई पड़ेगा जो हम देखना चाहते हैं। हम अक्सर यह सुनते आये हैं कि कुछ भी असंभव नहीं हैदरअसल, इस अवधारणा के पीछे भी यही तथ्य छुपा हुआ है। संसार के विस्तृत फलक पर सब कुछ मौजूद है लेकिन हमारी व्यक्तिगत दृष्टि ही उसमें संभव' और 'असंभव' ढूंढ लेती है। जब तक कोई चांद पर नहीं पहुंचा था, जब तक किसी ने एवरेस्ट को फ़तेह नहीं किया था, जब तक अमेरिका नहीं ढूंढा गया था, जब तक सूर्य के स्थिर होने और पृथ्वी के घूमने का पता नहीं चला था; तब तक बौद्धिक वर्ग भी इन सब बातों को असंभव ही मानता था। आज स्थिति वैसी नहीं है ।हम एक प्रतिस्पर्धी युग में जी रहे हैं। इसमें सफल होने के लिए हमें एक गहन दृष्टि और एक विशाल दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यही गहन दृष्टि हमें यह बता सकती है कि कहां पर जाल बिछा है और कहां पर भोजन है और इससे भी बड़ी बात कि इस भोजन को पाने का सही और सुरक्षित तरीका क्या है। इसके लिए हमें जिस अनुभव और कुशलता की आवश्यकता है वह रातोंरात नहीं आ सकती। स्वयं की अनभति से पैदा हआ अनभव ही वास्तविक अनुभव होता है। दूसरों के अनुभवों से सीख लेने में कोई बुराई नहीं है लेकिन दूसरों के अनुभव के प्रति हमारी ग्राह्यता का स्तर वह कभी नहीं हो सकता जो स्वानुभूति से होता है; रही बात कुशलता की तो वह केवल अभ्यास से ही आ सकती है। अभ्यास- एक ही प्रकार की गतिविधि के दोहराव और निरंतर उसकी ग्राह्यता का ही नाम है। वही उबाऊपन इसका नैसर्गिक सह-उत्पाद भी है। उबाऊपन किसी भी विषय में रुचि और ऊर्जा दोनों को ही कम करने का काम करता है।