भविष्य की ऊजा

मानव विकास के लिए अधिकाधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। बिजली पर हमारी बढ़ती निर्भरता के कारण भविष्य में ऊर्जा व्यय और भी बढ़ेगा। तो इतनी ऊर्जा आएगी कहां से? सब जानते हैं कि धरती पर कोयले और पेट्रोलियम के भंडार सीमित हैं, ये भंडार ज्यादा दिनों तक हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते। इससे प्रदूषण भी होता है। वैज्ञानिक लंबे समय से एक ऐसे ईंधन की खोज में हैं, जो पर्यावरण और मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बगैर हमारी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति करने में सक्षम हो । वैज्ञानिकों की यह तलाश नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) पर समाप्त होती दिखाई दे रही है। नाभिकीय संलयन प्रक्रिया ही सूर्य तथा अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत है। जब दो हल्के परमाणु नाभिक जुड़कर एक भारी तत्व के नाभिक का निर्माण करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। वैज्ञानिक कई वर्षों से सूर्य में संपन्न होने वाली संलयन अभिक्रिया को पृथ्वी पर कराने के लिए प्रयासरत हैं, जिससे बिजली पैदा की जा सके। अगर इसमें सफलता मिल जाती है तो यह सूरज को धरती पर उतारने जैसा होगा। हालांकि, लक्ष्य अभी दूर है, मगर चीनी वैज्ञानिकों की इस दिशा में हालिया बड़ी सफलता ने उम्मीदें जगा दी हैं। चीन के हेफई इंस्टीटयट ऑफ फिजिकल साइंसेज के मताबिक चीन अपने नाभिकीय विकास कार्यक्रम के तहत पृथ्वी पर नाभिकीय संलयन प्रक्रिया द्वारा सूर्य की तरह का एक ऊर्जा स्रोत बनाने का प्रयास कर रहा है। चाइना डेली में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों ने सूरज की सतह तापमान से भी 6 गुना ज्यादा तापमान तकरीबन 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा फिजिक्स के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में उत्पन्न कर ली है। वर्तमान नाभिकीय विखंडन पर आधारित रिएक्टरों की आलोचना का सबसे बड़ा कारण है, इनसे ऊर्जा के साथ रेडियोएक्टिव अपशिष्ट पदार्थों का भी उत्पन्न होना। धरती के समुद्रों में हाइड्रोजन भारी मात्रा में मौजूद है, इसलिए नाभिकीय संलयन के लिए ईंधन की कभी कमी नहीं होगी। डयटेरियम में एक न्यूट्रॉन होता है और ट्रिट्रियम में दो। अगर इन दोनों में टकराव हो तो उससे हीलियम का एक नाभिक बनता है तथा इस प्रक्रिया में ऊर्जा मुक्त होती है। भविष्य में इसी ऊर्जा का इस्तेमाल टर्बाइन को चलाने में किया जाएगा, जिससे बिजली उत्पन्न होगी।